अंतर्राष्ट्रीय कृषि नीतियों का भारतीय किसानों पर प्रभाव | Antarraashtreey Krshi Neetiyon Ka Bhaarateey Kisaanon Par Prabhaav

अंतर्राष्ट्रीय कृषि नीतियों का भारतीय किसानों पर प्रभाव

आज के वैश्विकरण के युग में अंतर्राष्ट्रीय कृषि नीतियाँ देश-विदेश के किसानों पर गहरा असर डाल रही हैं। व्यापारिक समझौतों, विश्व व्यापार संगठन (WTO) की नीतियों, और अंतर्राष्ट्रीय बाजार के उतार-चढ़ाव से भारतीय कृषि क्षेत्र समेत दुनिया भर की कृषि प्रणाली में लगातार परिवर्तन आ रहे हैं। इस ब्लॉग पोस्ट में हम विस्तार से समझने की कोशिश करेंगे कि ये अंतर्राष्ट्रीय कृषि नीतियाँ क्या हैं, ये कैसे काम करती हैं, और इनके प्रभाव से भारतीय किसान किस प्रकार प्रभावित हो रहे हैं।


अंतर्राष्ट्रीय कृषि नीतियाँ क्या हैं?

1. वैश्विक व्यापारिक समझौते और नीतियाँ

अंतर्राष्ट्रीय कृषि नीतियों का मूल उद्देश्य देशों के बीच व्यापार को सुव्यवस्थित करना और कृषि उत्पादों के आदान-प्रदान के लिए समान नियम निर्धारित करना है। जैसे कि WTO के अंतर्गत विभिन्न देशों को एक समान मंच पर व्यापार करने का अवसर मिलता है। यह नीति देशों के बीच सबल और निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देती है, जिससे कृषि उत्पादों की कीमतें और आपूर्ति में परिवर्तन देखने को मिलता है।


2. सब्सिडी और प्रोटेक्शनवाद

कुछ विकसित देशों में सरकारें अपने किसानों को आर्थिक सहायता या सब्सिडी देती हैं ताकि वे अंतर्राष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धा कर सकें। इससे उनकी उत्पादित वस्तुओं की कीमत कम हो जाती है, जिसके कारण वैश्विक बाजार में इनकी पकड़ मजबूत हो जाती है। वहीं, कुछ देश अपनी सुरक्षा के लिए आयात पर प्रतिबंध लगा देते हैं या कस्टम शुल्क बढ़ाते हैं। दोनों ही नीतियाँ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कृषि उत्पादों के व्यापार को प्रभावित करती हैं।


3. गुणवत्ता और मानकों का निर्धारण

अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कृषि उत्पादों को व्यापार करने के लिए कई बार उच्च गुणवत्ता मानकों को पूरा करना पड़ता है। देशों के बीच ऐसे मानकों पर भी सहमति होती है, जिसके अनुसार उत्पादों का आदान-प्रदान होता है। गुणवत्ता सम्बन्धी इन मानकों के कारण स्थानीय किसान अपनी परंपरागत उपज को भी बदलने या सुधारने पर मजबूर हो जाते हैं।


भारतीय कृषि का वैश्विक परिदृश्य

1. भारतीय कृषि की मौजूदा स्थिति

भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहाँ लगभग 50% से अधिक जनसंख्या कृषि से जुड़े हुए हैं। देश में विविध जलवायु, भौगोलिक स्थितियाँ, और मिट्टी के प्रकार उपलब्ध हैं, जिसके कारण यहाँ अलग-अलग प्रकार की फसलें उगाई जाती हैं। बावजूद इसके भारतीय किसानों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जैसे कि अपर्याप्त बुनियादी ढांचा, खराब सिंचाई सुविधाएँ, और बाज़ार तक सीमित पहुँच।

2. वैश्विक बाजार में भारतीय कृषि

वैश्वीकरण के इस दौर में भारतीय कृषि भी अंतर्राष्ट्रीय बाजार का हिस्सा बन चुकी है। निर्यात के जरिए भारतीय किसान अपने उत्पादों को विदेशी बाजार में बेचने का प्रयास कर रहे हैं। चावल, गेहूँ, मसाले, चाय, कॉफी और ताजे फल-सब्जियों का निर्यात भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण स्रोत बन चुका है। हालांकि, अंतर्राष्ट्रीय बाजार की अनिश्चितता और वैश्विक प्रतिस्पर्धा ने भारतीय किसानों के लिए चुनौतियाँ उत्पन्न कर दी हैं।


अंतर्राष्ट्रीय नीतियों के भारतीय किसानों पर प्रभाव

1. लाभ एवं अवसर

आर्थिक वृद्धि और निर्यात का अवसर

जब अंतर्राष्ट्रीय बाजार में नए अवसर खुलते हैं तो भारतीय किसानों के लिए निर्यात के नए रास्ते बनते हैं। अगर भारत के उत्पाद अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप हो जाते हैं, तो उन्हें उच्च मूल्य पर विदेशी बाजार में बेचा जा सकता है। इससे किसानों की आय में सुधार और आर्थिक समृद्धि की संभावना बढ़ती है। उदाहरण के लिए, जैविक कृषि और विशिष्ट क्षेत्रीय फसलों का निर्यात बढ़ सकता है।

तकनीकी नवाचार और साझा अनुभव

वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ने से किसान नई तकनीकों और उन्नत कृषि पद्धतियों को अपनाने के लिए प्रेरित होते हैं। अंतर्राष्ट्रीय कृषि मेलों, सम्मेलनों और विचार विमर्श के माध्यम से नए-नए तकनीकी नवाचार और उपकरण किसानों के पास पहुँचते हैं। इससे उनकी फसल की पैदावार बढ़ने, लागत कम होने और पर्यावरण के अनुकूल कृषि पद्धतियों को अपनाने में मदद मिलती है।


निवेश और बुनियादी ढांचे में सुधार

अंतर्राष्ट्रीय नीतियों के प्रभाव से निवेश के नए स्रोत खुलते हैं। विदेशी कंपनियाँ और निवेशक भारतीय कृषि में नवीन बुनियादी ढांचे, जैसे कि आधुनिक स्टोरेज सुविधा, ठंडा भंडारण केंद्र, और बेहतर लॉजिस्टिक्स सिस्टम में निवेश करने में रुचि दिखाते हैं। इससे किसानों को समय पर बाजार में अपनी उपज पहुँचाने में आसानी होती है और फसल की गुणवत्ता बनी रहती है।


2. चुनौतियाँ और नकारात्मक प्रभाव

कीमतों में उतार-चढ़ाव

अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कृषि उत्पादों की कीमतें बहुत तेजी से बदलती रहती हैं। वैश्विक माँग और आपूर्ति में बदलाव के कारण, कभी-कभी किसानों को अपनी फसल के लिए कम मूल्य प्राप्त हो सकता है। उदाहरण स्वरूप, जब किसी बड़े देश ने अपनी कृषि नीतियों में बदलाव किया तो भारतीय किसानों की उपज के दाम घट गए, जिससे उनकी आय प्रभावित हुई।

प्रतियोगिता में असमानता

विकसित देशों के किसानों को भारी सब्सिडी मिलने के कारण उनका उत्पादन सस्ता हो जाता है। इससे भारतीय किसानों को अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। उनकी उत्पादित वस्तुएँ महंगी पड़ जाती हैं, जबकि विदेशी उत्पाद कम कीमत पर उपलब्ध हो जाते हैं। यह असमान प्रतियोगिता भारतीय किसानों के लिए एक बड़ा झटका है।


गुणवत्ता मानकों की चुनौतियाँ

अंतर्राष्ट्रीय बाजार में प्रवेश पाने के लिए उच्च गुणवत्ता मानकों को पूरा करना एक बड़ी चुनौती है। भारतीय किसान, जो पारंपरिक कृषि विधियों से काम करते हैं, उन्हें आधुनिक तकनीकों और प्रक्रियाओं को अपनाने में कठिनाई होती है। इससे उनकी उपज अंतर्राष्ट्रीय मानकों से मेल नहीं खा पाती, और उन्हें बाजार में कमजोर स्थिति का सामना करना पड़ता है।


ऋण बोझ और आर्थिक अस्थिरता

जब कीमतें गिर जाती हैं तो किसानों को ऋण लेकर अपनी कृषि का संचालन करना पड़ता है। अंतर्राष्ट्रीय बाजार की अनिश्चितता और अस्थिरता के कारण किसानों को ऋण चुकाने में कठिनाई हो सकती है। इससे उनका आर्थिक बोझ बढ़ जाता है और कई बार उन्हें विवाद या ऋणदाताओं से संघर्ष का सामना करना पड़ता है।


सरकार की नीतियाँ और प्रयास

1. सरकार द्वारा संरक्षित उपाय

भारतीय सरकार ने किसानों की समस्याओं का समाधान करने के लिए कई कदम उठाए हैं। नीति निर्माताओं ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) जैसे कदमों के जरिए किसानों के हितों की रक्षा की है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कम मूल्य मिलने की स्थिति में भी किसानों को एक न्यूनतम आय प्राप्त हो सके।


2. तकनीकी सहायता और प्रशिक्षण

सरकार ने किसानों को नई तकनीक और आधुनिक कृषि पद्धतियों के प्रति जागरूक करने के लिए विभिन्न प्रशिक्षण कार्यक्रम और सेमिनार आयोजित किए हैं। इससे किसान नवीनतम तकनीकी जानकारी हासिल कर सकते हैं और अपने उत्पादन में सुधार ला सकते हैं। डिजिटल इंडिया अभियान के तहत कृषि से संबंधित जानकारी मोबाइल ऐप्स और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के जरिए भी उपलब्ध कराई जा रही है।


3. अंतर्राष्ट्रीय समझौतों में सहभागिता

भारत ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी कृषि नीतियाँ मजबूत करने के लिए कई समझौते किए हैं। इन समझौतों के तहत भारत अपने किसानों के लिए नए निर्यात बाजार खोलने का प्रयास कर रहा है। सरकार विदेश मंत्रालय और व्यापार विभाग की मदद से वैश्विक मंच पर भारतीय कृषि उत्पादों की पहचान स्थापित करने में लगी हुई है।


4. ऋण राहत और बीमा योजनाएँ

किसानों की वित्तीय असुरक्षा को दूर करने के लिए सरकार ने कई ऋण राहत योजनाएँ और कृषि बीमा योजनाएँ लागू की हैं। इन योजनाओं का उद्देश्य किसानों को अत्यधिक ऋण बोझ से बचाना और उनके नुकसान की भरपाई करना है। इससे किसानों को अंतर्राष्ट्रीय बाजार की अनिश्चितता के बावजूद मन की शांति मिलती है।


अंतर्राष्ट्रीय नीतियों के समग्र प्रभाव का विश्लेषण

1. सकारात्मक प्रभाव

. निर्यात में वृद्धि: अंतर्राष्ट्रीय बाजार में अवसरों के खुलने से निर्यात बढ़ा है। इससे किसानों को अपनी उपज के लिए बेहतर दाम मिल सकते हैं।


. तकनीकी उन्नति: वैश्विक तकनीकी नवाचार से भारतीय किसान आधुनिक उपकरण और पद्धतियाँ अपनाकर उत्पादन में वृद्धि कर सकते हैं।


. निवेश की संभावनाएँ: विदेशी निवेश से बुनियादी ढांचे में सुधार और आपूर्ति श्रृंखला में मजबूती आती है, जो कि किसानों के हित में है।


2. नकारात्मक प्रभाव

. मूल्य अनिश्चितता: वैश्विक बाजार की उतार-चढ़ाव से कृषि उत्पादों की कीमतों में अस्थिरता आती है, जो किसानों के आर्थिक हित को प्रभावित करती है।


. असमान प्रतिस्पर्धा: भारी सब्सिडी प्राप्त विकसित देशों की तुलना में भारतीय किसान आर्थिक रूप से कमजोर स्थिति में हो सकते हैं।


. मानक और गुणवत्ता: अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप अपनी उपज को बदलने में कठिनाइयाँ उत्पन्न होती हैं, जिससे निर्यात में बाधा आती है।


3. दीर्घकालीन प्रभाव

दीर्घकालीन रूप से देखा जाए तो अंतर्राष्ट्रीय कृषि नीतियाँ भारतीय कृषि के ढांचे में बदलाव ला सकती हैं। अगर किसानों के पास आवश्यक संसाधन, तकनीक और प्रशिक्षण उपलब्ध कराया जाता है, तो वे अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में खुद को बेहतर तरीके से प्रस्तुत कर सकते हैं। वहीं, यदि सरकार उचित नीतियाँ लागू करने में असमर्थ रहती है, तो भारतीय कृषि प्रणाली में असंतुलन और आर्थिक अस्थिरता बढ़ सकती है।


भारतीय किसानों की चुनौतियाँ

1. बाजार तक पहुँच की कमी

अक्सर छोटे किसानों को अपने उत्पादों के लिए उचित बाजार नहीं मिलता। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यापार करते समय बेहतर लॉजिस्टिक्स और सप्लाई चेन की आवश्यकता होती है। लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में यह सुविधाएं सीमित होती हैं। इससे किसानों को अपनी उपज सही मूल्य पर बेचने में कठिनाई होती है।

2. वित्तीय असुरक्षा और ऋण चक्र

जब विदेशी बाजार में कीमतों में उतार-चढ़ाव होता है, तो किसानों की आय में अचानक गिरावट आ जाती है। इससे उन्हें अपनी खेती चलाने के लिए ऋण लेना पड़ता है, जो बाद में ऋण चक्र में फंस जाने का कारण बनता है। ऋण का बोझ किसानों के मानसिक और आर्थिक स्वास्थ्य दोनों पर प्रभाव डालता है।


3. पर्यावरणीय चुनौतियाँ

पर्यावरणीय समस्याओं और प्राकृतिक आपदाओं के समय अंतर्राष्ट्रीय बाजार में अस्थिरता के कारण किसानों की स्थिति और भी बिगड़ जाती है। जैसे कि सूखा, बाढ़ आदि के समय किसानों को अपनी फसल के लिए पूर्वानुमान के अनुसार योजना बनाने में कठिनाई होती है, जिससे उनकी आय पर सीधा असर पड़ता है।


4. तकनीकी अंतर और प्रशिक्षण की कमी

अधिकांश ग्रामीण क्षेत्रों में उच्च तकनीक की जानकारी और प्रशिक्षण की कमी होती है। जब अंतर्राष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ती है, तो नई तकनीकों और उन्नत कृषि पद्धतियों को अपनाना आवश्यक हो जाता है। लेकिन इसका अभाव किसानों के लिए हानिकारक सिद्ध होता है। तकनीकी अंतर के कारण उनकी उपज गुणवत्ता मानकों को पूरा नहीं कर पाती, जिससे निर्यात में रुकावट आती है।


सुधारात्मक उपाय और भविष्य की दिशा

1. नीति सुधार और राहत योजनाएँ

सरकार को चाहिए कि वह अंतर्राष्ट्रीय नीतियों के प्रभाव को ध्यान में रखते हुए ग्रामीण विकास योजनाओं में बदलाव करे।


. न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP): MSP प्रणाली को और प्रभावी बनाने की आवश्यकता है ताकि वैश्विक बाजार के उतार-चढ़ाव से किसानों की आय सुरक्षित रहे।


. कृषि सब्सिडी और सहायता: विकसित देशों द्वारा दी जा रही सब्सिडी से मुकाबला करने के लिए भारतीय सरकार को भी कुछ विशेष सहायताएँ प्रदान करनी चाहिए।


. ऋण राहत कार्यक्रम: ऋण के बोझ को कम करने के लिए और संकट के समय में सहायता के तौर पर ऋण राहत एवं पुनर्गठन कार्यक्रमों को विस्तृत किया जाना चाहिए।


2. तकनीकी नवाचार और प्रशिक्षण

भारतीय किसानों को अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में आगे बढ़ाने के लिए तकनीकी नवाचार और प्रशिक्षण अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।


. आधुनिक तकनीक का उपयोग: ड्रोन्स, सेंसर्स, और स्मार्ट कृषि जैसे तकनीकी उपकरणों का उपयोग कृषि उत्पादन में सुधार ला सकता है।


. ऑनलाइन प्रशिक्षण सत्र: सरकार और कृषि विश्वविद्यालयों द्वारा किसानों के लिए ऑनलाइन कोर्स और कार्यशालाएँ आयोजित की जानी चाहिए ताकि वे नवीनतम कृषि तकनीकों के बारे में जान सकें।


. स्थानीय प्रयोगशालाएँ और परीक्षण केंद्र: इन केंद्रों के माध्यम से किसानों को यह बताया जा सके कि किस प्रकार की तकनीक उनके क्षेत्र के लिए सबसे उपयुक्त है।


3. बुनियादी ढांचे का विकास

सुधारात्मक कदमों में बुनियादी ढांचे का विकास भी शामिल होना चाहिए:


. बेहतर परिवहन व्यवस्था: किसानों की उपज को शहरों और निर्यात बाजार तक पहुँचाने के लिए बेहतर सड़कों, कोल्ड स्टोरेज और ट्रांसपोर्ट सुविधाओं का निर्माण आवश्यक है।


. सूचना तक पहुँच: डिजिटल इंडिया कार्यक्रम और ग्रामीण इंटरनेट सेवा को मजबूत करके किसानों को बाजार की नवीनतम जानकारी, मूल्य और मौसम सम्बन्धी जानकारी उपलब्ध कराई जा सकती है।


. सहयोगी सहकारी समितियाँ: छोटे किसानों द्वारा सहकारी समितियाँ बनाकर अपने उत्पादों को एकजुट करने से निर्यात में सहूलियत पैदा हो सकती है।


4. अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और समझौते

भारतीय कृषि की स्थिति को सुदृढ़ करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग अत्यंत आवश्यक है:


. द्विपक्षीय और बहुपक्षीय समझौते: सरकार को ऐसे समझौतों पर ध्यान देना चाहिए जिससे भारतीय उत्पादों के लिए विदेशी बाजार में छूट और अनुकूल тариф दरें सुनिश्चित की जा सकें।


. प्रौद्योगिकी हस्तांतरण: विकसित देशों से प्रौद्योगिकी और नवाचार के क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने से किसानों को नई तकनीक अपनाने में सहायता मिल सकती है।


. वैश्विक शिक्षा और प्रशिक्षण सहयोग: अंतर्राष्ट्रीय कृषि सम्मेलनों, कार्यशालाओं और ऑनलाइन प्लेटफार्मों के माध्यम से भारतीय किसानों को वैश्विक स्तर पर बेहतर प्रशिक्षण और जानकारी मिल सकती है।


भारतीय किसानों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति पर प्रभाव

1. जीवन स्तर में सुधार

यदि अंतर्राष्ट्रीय कृषि नीतियों के माध्यम से सही कदम उठाए जाएँ तो भारतीय किसानों के जीवन स्तर में सुधार संभव है। बेहतर बाजार पहुँच, उचित मूल्य सुनिश्चित करने की नीति, और तकनीकी नवाचार से किसानों की आय में वृद्धि हो सकती है। इससे उनके परिवार की आर्थिक स्थिति मजबूत होगी और शिक्षा, स्वास्थ्य, और आवास जैसी बुनियादी सुविधाएँ उपलब्ध हो सकेंगी।


2. ग्रामीण विकास और सामुदायिक सशक्तिकरण

जब कृषि उत्पादन में वृद्धि होती है तो पूरे ग्रामीण क्षेत्र का विकास होता है। नए रोजगार के अवसर पैदा होते हैं, जिससे ग्रामीण इलाकों में बेरोजगारी की समस्या में कमी आती है। सहकारी समितियाँ और स्थानीय उद्यमिता के जरिए किसान समुदाय स्वयं को आर्थिक रूप से सशक्त बना सकते हैं। इससे ग्रामीण समाज में आत्मनिर्भरता बढ़ेगी और विकास की गति तेज होगी।


3. पर्यावरण और स्थिरता

अंतर्राष्ट्रीय नीतियाँ पर्यावरणीय स्थिरता के दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण हैं। आधुनिक तकनीकों और सतत कृषि के मॉडल से फसल की पैदावार बढ़ती है और पर्यावरण पर दबाव कम पड़ता है। जैविक कृषि और पर्यावरणीय अनुकूल कृषि पद्धतियाँ अपनाने से मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है और प्रदूषण में कमी आती है।


वैश्विक आर्थिक परिदृश्य का कृषि पर प्रभाव

1. वैश्विक संकट और अस्थिरता

जब भी वैश्विक आर्थिक संकट आता है, अंतर्राष्ट्रीय बाजार में अस्थिरता फैल जाती है। इससे कृषि उत्पादों की कीमतों में तेज गिरावट या अचानक वृद्धि देखने को मिल सकती है। उदाहरण के तौर पर, COVID-19 महामारी के दौरान वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में रुकावटें आईं, जिसके कारण किसानों को काफी नुकसान हुआ। ऐसे समय पर अंतर्राष्ट्रीय नीतियाँ भी बदलती हैं, और किसानों को अतिरिक्त चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।


2. निर्यात और आयात का संतुलन

अंतर्राष्ट्रीय नीतियाँ निर्यात और आयात के संतुलन पर भी प्रभाव डालती हैं। यदि किसी विकसित देश ने कृषि उत्पादों पर उच्च शुल्क लगा रखा है, तो यह भारतीय किसानों के निर्यात पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। दूसरी ओर, यदि विदेशी बाजार में भारतीय उत्पादों की मांग बढ़ती है, तो यह किसानों के लिए लाभकारी साबित हो सकता है। इस संतुलन को सही ढंग से बनाए रखने के लिए सरकारी हस्तक्षेप और अंतर्राष्ट्रीय समझौते महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

3. मुद्रा दरें और आर्थिक दबाव

वैश्विक मुद्रा दरों में उतार-चढ़ाव से भी भारतीय कृषि पर असर पड़ता है। जब विदेशी मुद्रा का मूल्य बदलता है, तो निर्यात और आयात की कीमतों में अंतर आता है। इससे किसानों को अपनी आय का पूर्वानुमान लगाने में कठिनाई होती है। आर्थिक दबाव और विदेशी मुद्रा में अस्थिरता से निपटने के लिए भी विशेष नीतियों और राहत कार्यक्रमों की आवश्यकता होती है।


निष्कर्ष

अंतर्राष्ट्रीय कृषि नीतियाँ एक दोधारी तलवार के समान हैं। एक ओर ये भारतीय किसानों के लिए निर्यात, तकनीकी नवाचार, और वैश्विक सहयोग जैसे अवसर लेकर आती हैं, वहीं दूसरी ओर ये मूल्य अनिश्चितता, असमान प्रतिस्पर्धा, और गुणवत्ता संबंधी चुनौतियाँ भी प्रस्तुत करती हैं। भारतीय किसानों के लिए सबसे आवश्यक यह है कि वे इन वैश्विक नीतियों से खुद को अपडेट रखें, आवश्यक तकनीकी सहायता अपनाएं, और सरकार द्वारा दी जा रही सुविधाओं का भरपूर लाभ उठाएँ।


सरकार को चाहिए कि वह अंतर्राष्ट्रीय नीतियों के प्रभाव को ध्यान में रखते हुए अपने किसानों के हितों की रक्षा के लिए और भी सुदृढ़ कदम उठाए। न्यूनतम समर्थन मूल्य, ऋण राहत, प्रशिक्षण, और बुनियादी ढाँचे के विकास के माध्यम से, भारतीय कृषि को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने का प्रयास किया जाना चाहिए। साथ ही, विदेशी निवेश और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को बढ़ावा देकर, किसानों को आधुनिक तकनीक और बेहतर उत्पादन पद्धतियों से लैस किया जा सकता है।

कोई टिप्पणी नहीं

Blogger द्वारा संचालित.